बचपन के सुखी दिन , जो कभी नहीं लौटेंगे ! क्या कभी कोई उसकी स्मृतियाँ भुला सकता है ? उसके बारे में सोचते ही मेरा मन आज भी उल्लसित हो उठता है, आत्मा में एक नूतन ऊंचाई का अनुभव होने लगता है।
याद आता है , किस तरह दिन भर की उछल -कूद बाद हम चाय की मेज के इर्द - गिर्द बैठ जाते थे। काफी देर हो चुकी होती थी, दूध और मिठाई के बाद आंखें नींद में मुंदने लगती थीं, किन्तु फिर भी हम अपनी कुर्सी पर बैठे रहते थे। सुनने का शौक दबाना असंभव था।
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लेकिन नींद से मेरी पलकें भारी हो जातीं और दूसरे ही क्षण मै सुध-बुध खोकर सोने लगता। आधी नींद में ही लगता कि कोई अपने कोमल हाथों से मुझे छू रहा है और मैं जान जाता कि यह माँ का स्पर्श है।
मुझे उनका प्रिय, परिचित स्वर सुनाई दे जाता है - अब उठो, अपने बिस्तर पर जाकर आराम से सो जाओ। मैं अचानक जाग जाता हूं। माँ मेरे पास बैठी है और मुझे छू रही हैं। मैं उनकी गंध को पहचानता हूँ, और दोनों बाहें उनके गले में डाल देता हूँ। फिर ऊपर अपने कमरे में जाकर मैं संतों के चित्रों प्रार्थना , हे प्रभु, माँ और पिताजी को हमेशा सुखी रखो !
प्रार्थना के बाद हल्की , उल्लास - भरी और उज्जवल-सी भावना घिरने लगती है। एक के बाद एक सपने आते हैं। वे सब धुंधले और छुईमुई - से जान पड़ते हैं - लेकिन उन सबमें निर्मल प्रेम और असीम सुख की आशा भरी होती है। क्या बचपन की वह ताजगी, बेफिक्री, प्यार की भूक और आस्था दुबारा कभी लौट सकेगी? प्रेम में उफनती प्रार्थनाएं कहाँ हैं ? हमारी ज़िन्दगी के सबसे सुन्दर उपहार - भीगी , कोमल , भावनाओं में उमड़ते आसूं क्या हमेशा के लिए खो गए ?
Bahut sundar chitran
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