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Sunday, 24 March 2019

विक्रम बेताल कहानी – 18 | विद्या क्यों नष्ट हो गयी? बेताल पच्चीसी -अठारहवीं कहानी | Vikram Betal Story 18



उज्जैन नगरी में महासेन नाम का राजा राज करता था। उसके राज्य में वासुदेव शर्मा नाम का एक ब्राह्मण रहता था, जिसके गुणाकर नाम का बेटा था। गुणाकर बड़ा जुआरी था। वह अपने पिता का सारा धन जुए में हार गया। ब्राह्मण ने उसे घर से निकाल दिया। वह दूसरे नगर में पहुँचा। वहाँ उसे एक योगी मिला। उसे हैरान देखकर उसने कारण पूछा तो उसने सब बता दिया। योगी ने कहा, "लो, पहले कुछ खा लो।" गुणाकर ने जवाब दिया, "मैं ब्राह्मण का बेटा हूँ। आपकी भिक्षा कैसे खा सकता हूँ?"

इतना सुनकर योगी ने सिद्धि को याद किया। वह आयी। योगी ने उससे आवभगत करने को कहा। सिद्धि ने एक सोने का महल बनवाया और गुणाकार उसमें रात को अच्छी तरह से रहा। सबेरे उठते ही उसने देखा कि महल आदि कुछ भी नहीं है। उसने योगी से कहा, "महाराज, उस स्त्री के बिना अब मैं नहीं रह सकता।"

योगी ने कहा, "वह तुम्हें एक विद्या प्राप्त करने से मिलेगी और वह विद्या जल के अन्दर खड़े होकर मंत्र जपने से मिलेगी। लेकिन जब वह लड़की तुम्हें मेरी सिद्धि से मिल सकती है तो तुम विद्या प्राप्त करके क्या करोगे?"

गुणाकर ने कहा, "नहीं, मैं स्वयं वैसा करूँगा।" योगी बोला, "कहीं ऐसा न हो कि तुम विद्या प्राप्त न कर पाओ और मेरी सिद्धि भी नष्ट हो जाय!"

पर गुणाकर न माना। योगी ने उसे नदी के किनारे ले जाकर मंत्र बता दिये और कहा कि जब तुम जप करते हुए माया से मोहित होगे तो मैं तुम पर अपनी विद्या का प्रयोग करूँगा। उस समय तुम अग्नि में प्रवेश कर जाना।"

गुणाकर जप करने लगा। जब वह माया से एकदम मोहित हो गया तो देखता क्या है कि वह किसी ब्राह्मण के बेटे के रूप में पैदा हुआ है। उसका ब्याह हो गया, उसके बाल-बच्चे भी हो गये। वह अपने जन्म की बात भूल गया। तभी योगी ने अपनी विद्या का प्रयोग किया। गुणाकर मायारहित होकर अग्नि में प्रवेश करने को तैयार हुआ। उसी समय उसने देखा कि उसे मरता देख उसके माँ-बाप और दूसरे लोग रो रहे हैं और उसे आग में जाने से रोक रहे हैं। गुणाकार ने सोचा कि मेरे मरने पर ये सब भी मर जायेंगे और पता नहीं कि योगी की बात सच हो या न हो।

इस तरह सोचता हुआ वह आग में घुसा तो आग ठंडी हो गयी और माया भी शान्त हो गयी। गुणाकर चकित होकर योगी के पास आया और उसे सारा हाल बता दिया।

योगी ने कहा, "मालूम होता है कि तुम्हारे करने में कोई कसर रह गयी।"

योगी ने स्वयं सिद्धि की याद की, पर वह नहीं आयी। इस तरह योगी और गुणाकर दोनों की विद्या नष्ट हो गयी।

इतनी कथा कहकर बेताल ने पूछा, "राजन्, यह बताओ कि दोनों की विद्या क्यों नष्ट हो गयी?"

राजा बोला, "इसका जवाब साफ़ है। निर्मल और शुद्ध संकल्प करने से ही सिद्धि प्राप्त होती है। गुणाकर के दिल में शंका हुई कि पता नहीं, योगी की बात सच होगी या नहीं। योगी की विद्या इसलिए नष्ट हुई कि उसने अपात्र को विद्या दी।"

राजा का उत्तर सुनकर बेताल फिर पेड़ पर जा लटका। राजा वहाँ गया और उसे लेकर चला तो उसने यह कहानी सुनायी।

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